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कुमावत समाज भारत का एक प्राचीन और सम्मानित समुदाय है। यह समाज मुख्यतः राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, और उत्तर प्रदेश में बसा हुआ है। कुमावत समाज की उत्पत्ति प्राचीन वास्तुकार विश्वकर्मा जी से मानी जाती है। इसे विश्वकर्मा समाज का एक अंग भी माना जाता है। कुमावत शब्द का अर्थ है – “कुशल निर्माणकर्ता”। पारंपरिक रूप से यह समाज शिल्पकला, निर्माण कार्य और मूर्तिकला में निपुण रहा है। वर्तमान समय में कुमावत समाज के लोग शिक्षा, व्यापार, राजनीति और अन्य क्षेत्रों में आगे बढ़ रहे हैं। समाज के लोग मेहनती, ईमानदार और संस्कारी होते हैं। कुमावत समाज का प्रमुख त्यौहार “विश्वकर्मा जयंती” है, जिसे बड़ी श्रद्धा से मनाया जाता है। विवाह, जन्म और अन्य सामाजिक रस्में समाज में एकता और संस्कृति को बढ़ावा देती हैं। समाज की अपनी परंपराएं, रीति-रिवाज़ और लोकगीत होते हैं। युवाओं को शिक्षा के प्रति प्रोत्साहित किया जा रहा है। कई कुमावत समाजिक संस्थाएं और संगठन समाज के उत्थान के लिए कार्य कर रही हैं। सामाजिक एकता और सहयोग कुमावत समाज की सबसे बड़ी ताकत है। समाज की महिलाएं भी अब शिक्षा और व्यवसाय में आगे बढ़ रही हैं।
- “हम कुमावत समाज को इस दिशा में प्रेरित करते हैं कि वे सपनों को साकार करें, ज्ञान को अपनाएं, कर्म में विश्वास रखें और समाज का गौरव बढ़ाएं।”
The Head Line Of this website : Kumawat Samaj
प्रेरणा पथ
“कुमावत समाज का उद्देश्य है अपने सभी सदस्यों को एक समृद्ध, संतुलित और मूल्य आधारित जीवनदृष्टि देना — जहाँ शिक्षा, संस्कार और सामाजिक गतिविधियाँ मिलकर उन्हें श्रेष्ठ सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन के लिए तैयार करें।”

कुमावत समाज का गौरवशाली इतिहास
कुमावत समाज की उत्पत्ति भगवान विश्वकर्मा से मानी जाती है, जो देवताओं के शिल्पकार और निर्माणकर्ता माने जाते हैं।

कुमावत समाज की सांस्कृतिक परंपराएं
कुमावत समाज न केवल शिल्प और निर्माण कार्य में प्राचीन गौरव से जुड़ा है, बल्कि इसकी सांस्कृतिक परंपराएं भी अत्यंत समृद्ध, अनुशासित और प्रेरणादायक रही हैं ।

कुमावत समाज का सामाजिक योगदान
समाज ने कई मंदिर, धर्मशालाएं और संस्कार केंद्रों का निर्माण कराया है, जहाँ समाज और अन्य वर्गों को सुविधा मिलती है।

डिजिटल युग में कुमावत समाज की नई उड़ान
21वीं सदी को डिजिटल क्रांति का युग कहा जाता है। जहां हर समाज, हर वर्ग अपनी पहचान को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाने का प्रयास कर रहा है ।

कुमावत समाज के महान व्यक्तित्व
कुमावत समाज के व्यक्तित्व सिर्फ कारीगर नहीं, बल्कि संस्कृति के निर्माता रहे हैं। हमारे पूर्वजों ने अपने हाथों से मंदिर, महल और मूर्तियाँ गढ़कर इतिहास रच दिया।

युवा पीढ़ी की सोच और दिशा
कुमावत समाज की युवा पीढ़ी अब परंपरा के साथ आधुनिकता का संतुलन बनाकर आगे बढ़ रही है। आज के युवा केवल शिल्पकला तक सीमित नहीं, बल्कि शिक्षा, टेक्नोलॉजी, व्यापार और सरकारी सेवाओं में भी अपनी पहचान बना रहे हैं।

कुमावत समाज की धर्मशालाएं और संस्थान
धर्मशालाएं
कुमावत समाज ने देश के कई भागों में धर्मशालाएं और भवन बनवाए हैं, जो सामाजिक एकता, सेवा और संस्कृति के केंद्र हैं।
ये धर्मशालाएं समाज के यात्रियों, मेहमानों और आयोजनों के लिए निःशुल्क या कम दरों पर सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं।
इनमें विवाह, सत्संग, बैठकें, सम्मेलन और अन्य सामाजिक कार्यक्रम होते हैं।
राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली, और अन्य बड़े शहरों में कुमावत समाज की धर्मशालाएं मौजूद हैं।
कई धर्मशालाएं समाज के सहयोग से बनाई गई हैं, और वे आत्मनिर्भर तरीके से चलाई जाती हैं।
प्रमुख स्थानों पर स्थित धर्मशालाएं
जयपुर – कुमावत समाज धर्मशाला, विद्याधर नगर
जोधपुर – श्री कुमावत समाज भवन
शैक्षणिक और सामाजिक संस्थान
कुमावत समाज की कई संस्थाएं समाज के विकास, शिक्षा और युवाओं को मार्गदर्शन देने में सक्रिय हैं:
शिक्षा के लिए:
समाज के कई संस्थानों ने छात्रावास, छात्रवृत्ति (स्कॉलरशिप) और कोचिंग सपोर्ट की व्यवस्था की है।
कुछ संगठनों ने विद्यालय, कॉलेज या ट्यूटर सेंटर भी शुरू किए हैं, जिससे गरीब और जरूरतमंद छात्रों को मदद मिल सके।
समाज सेवा के लिए:
रक्तदान शिविर, स्वास्थ्य जांच कैंप, सामूहिक विवाह और युवाओं के लिए जॉब गाइडेंस प्रोग्राम चलाए जाते हैं।
कई संगठन महिला सशक्तिकरण, कौशल विकास और डिजिटल शिक्षा पर काम कर रहे हैं।